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जलमंडल Earth Ocean Water Information

 Ocean Water जलमंडल Hydrosphere की सभी जानकारियाँ

हमें जीवित रहने के लिए जिस प्रकार वायु की आवश्यकता होती है उतना ही हमें जीवन के लिए जल की भी बहुत आवश्यकता होती है. जल की उपलब्धता के कारण ही आज पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है. हमारी पृथ्वी पर Ocean Water का ७१% भाग जल का है. जल नदियों, झीलों, हिमच्छादित क्षेत्र, हिमनदी, सागर व महासागरों में संचित है. पृथ्वी का अधिकांश भाग पानी से ढका हुआ है जिसमे सागर तथा महासागर आते है, इसका पानी अत्यंत खारा होने के कारण पीने तथा अन्य कार्यों के उपयोग में नहीं लाया जा सकता.

जलीय चक्र




पृथ्वी पर विशाल भूखंड को महाद्वीप कहा जाता है. जिनके चारो और Ocean Water महासागर से जल वायुमंडल, वहाँ से स्थल तथा फिर महासागर में गमन करता है, इसे ही जलीय चक्र कहा जाता है. जल चक्र न तो शुरू होता है और न ही खत्म होता है. यह तो लगातार इसी प्रकार चलता रहता है. सूर्य की किरणों से महासागरों के जल का वाष्पीकरण किया जाता है. जिस कारण जलवाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाता है. जब यह जलवाष्प ऊपर वायुमंडल में पहुचता है तब वहाँ संघनन की क्रिया द्वारा जलवाष्प को छोटे-छोटे सूक्ष्म जलकणों में परिवर्तित कर देती है.

ये छोटे-छोटे जलकण मेघों (बादलों) की रचना करते है. इसके बाद में आपस में चिपक जाते है फिर ये जलकण बड़े व भारी हो जाते है. जिससे ये वायु में लटके नहीं रह पाते और बारिश के रूप में तथा हिम वर्षा के रूप में पृथ्वी के धरातल पर गिरने लगते है.

वर्षा का पानी बहता हुआ नालों, नदियों से होता हुआ सागरों में जा मिलता है. वर्षा का कुछ जल पृथ्वी की दरारों से रिस कर भूमि के निचे शैलों के एकत्र हो जाता है जो भूमिगत जल कहलाता है. कुछ जल झीलों तथा तालाबों में एकत्र हो जाता है. पेड पौधे भूमिगत जल का प्रयोग अपनी जड़ों द्वारा करते है व जल पत्त्तियों द्वारा उत्सर्जन की क्रिया द्वारा वायुमंडल में पहुँच जाता है इसे वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है.

महासागरीय जल Ocean Water

पृथ्वी के तापमान तथा जल चक्र में भी महासागरों का महत्वपूर्ण स्थान है. हमें भोजन के रूप में मछली तथा जीव जंतु भी प्रदान करते है, महासागरों का प्रयोग व्यापार तथा यातायात के लिए हजारों वर्षों से किया जा रहा है. महासागरों का जल बहुत खारा होने के कारण इसे घरेलु कार्यो, सिचाई तथा ओद्योगिक उपयोग में नहीं लाया जा सकता महासागर परिवहन के सबसे सस्ते साधनों में से एक है.

मैग्नीशियम क्लोराइड, सोडियम क्लोराइड आदि अनेक खनिज लवण जल में घुले रहते है जो इसके स्वाद में खारापन बढ़ाते है. महासागर में खारेपन (लवणता) की मात्रा इसमें घुले खनिजों द्वारा मापी जाती है. इसे प्रति १००० ग्राम जल में लवणता से जाना जाता है. लवणता की मात्रा महासागरों Ocean Water में प्रति एक हजार ग्राम जल में ३५ लवन है. यह मात्र सभी स्थानों पर एक समान न होकर भिन्न-भिन्न होती है. कुछ प्रमुख कारक लवणता की इस मात्रा पर नियंत्रण का कार्य करते है, जैसे नदियों द्वारा लाये गए स्वच्छ जल का मिश्रण, वर्षा की मात्रा वाष्पीकरण की दर तथा जल का संचरण आदि. वाष्पीकरण की ऊँची दर व ऊँचे तापमान के कारण कतिबंधों में उच्च लवणता पाई जाती है.

जल बजट और जल संरक्षण

जल बजट में आय और व्यय दौनों ही आते है. हमारे परिवार के बजट के समान ही जल बजट भी है. पृथ्वी के कुल जल का लगभग ९३% भाग सागरों तथा  महासागरों Ocean Water में पाया जाता है, ५% स्वच्छ भंडारों जैसे तालाब, झील, नदी तथा भूमिगत जल आदि बाकी २% हिमनदी तथा हिम टोपियों में पाया जाता है. पृथ्वी पर जलचक्र के कारण जल की मात्रा एक सामान बनी रहती है. जल का संचरण महासागरों से वायुमंडल में व फिरे वहाँ से धरातल व सागरों की और लगातार होता रहता है. इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि सारी वर्षा (आय या प्राप्ति) वाष्पीकरण व उत्सर्जन व्यय के समान बराबर ही होता है इसे ही जल का बजट कहा जाता है. पृथ्वी के जल बजट में संतुलन बना रहता है. परन्तु कभी कभी वर्षा की अधिकता या कमी के कारण जल बजट थोडा गड़बड़ा या असंतुलित हो जाता है. संसार का तापमान बढ़ने व हिमनदी तथा ग्लेशियरों के पिघलने से हमारा यह जल बजट आजकल असंतुलित हो गया है. जल चक्र को बदलना संभव नहीं है और अधिक जनसँख्या के कारण जल आपूर्ति को हम आवश्यकतानुसार बढ़ाने में भी असमर्थ है. बहुत सा जल शहरों और उद्योगों के कारण व्यर्थ जो जाता है. बिना साफ़ किया जल इन जल भंडारों के जल को प्रदूषित कर देता है. बढती हुई जनसंख्या की माँग को पूरा करने के लिए हमें जल का संरक्षण करना जरुरी है, यह आवश्यक है कि हम जल का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से करे.

महासागरीय गतियाँ

Ocean Water महासागरों का जल सदैव अशांत रहता है. जो तीन प्रकार की गति इस जल में होती रहती है. वह इस प्रकार से है

ज्वार

भाटा

लहरें

धाराएँ

ज्वार भाटा

महासागरों के जल Ocean Water में रोज एक निश्चित समय के अंतराल पर उठने गिरने की क्रिया ज्वार भाटा कहलाती है. उच्च ज्वार सागर के जल के ऊपर उठने की क्रिया को कहा जाता है. जब जल नीचे गिरता है तो उस क्रिया को निम्न ज्वार या भाटा कहा जाता है. सूर्य और चंद्रमा की आकर्षक शक्ति के कारण ज्वार उत्पन्न होते है. चंद्रमा की आकर्षक शक्ति सूर्य की अपेक्षा ज्यादा होती है क्योकि चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है. चंद्रमा की आकर्षक शक्ति से सागरीय जल किसी विशेष क्षेत्र में इकटठा हो जाता है एवं अन्य क्षेत्रों का जल निम्न ज्वार के कारण हट जाता है.

पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य जब समकोण की स्थिति में होते है, यह स्थिति प्रत्येक माह के पहले तथा तीसरे सप्ताह में होती है. जब उच्च ज्वार भी सामान्य से नीचे ही होते है चंद्रमा व सूर्य की आकर्षक शक्ति के बट जाने के कारण ऐसा होता है. इस ज्वारों को लघु ज्वार कहते है.


अमावश्या व पूर्णिमा को जब पृथ्वी चंद्रमा तथा सूर्य एक सीधी रेखा में होते है तब सागर में अधिक उच्च ज्वार उठता है और निम्न ज्वार भाटा भी अधिक निम्न रहता है. इस प्रकार के ज्वार को वृहत ज्वार कहते है.


यह ज्वार हमारे लिए बहुत उपयोगी होते है. कोलकाटा, न्युयोर्क, लन्दन, रोर्टरडम आदि बंदरगाहों को उच्च ज्वार से बहुत लाभ होता है. उदाहरण बड़े बड़े समुद्री जहाज उच्च ज्वार के समय बंदरगाह में सरलता से आ जाते है. तथा भाटे के समय आसानी से बाहर जा सकते है. ज्वार आने से बालू कीचड़ आदि निक्षेप नदी मुहाने से दूर बहकर चले जाते है. शीत ऋतू में उच्च ज्वार बंदरगाहों को जमने से भी बचाते है. उच्च ज्वार जल विद्युत उत्पादन के अच्छे स्त्रोत माने जाते है.

लहरे (Waves)

समुद्र धाराओं की उत्पत्ति निम्न कारणों द्वारा होती है. महाद्वीपों के तट की आकृति, पृथ्वी का घूर्णन, ग्रहीय पवन तथा महासागरीय जल की लवणता व तापमान में भिन्नता. पृथ्वी के घूर्णन के कारण सागरीय धाराएँ दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बाई तरफ और उत्तर गोलार्ध में अपनी दाहिनी और मुड़ जाती है. समुद्र जल के एक निश्चित दिशा में जाने को सागरीय धारा कहते है. ये पृथ्वी के धरातल पर बहने वाली नदियों की भाति होती है. धीमी गति से बहने वाले जलस्त्रोतो को ड्रिफ्ट और प्रवाह कहा जाता है.

सागरों के तट की आकृति के कारण इन धाराओं के मार्ग निश्चित होते है. इन धाराओं के दो प्रकार है. गर्म धारा व ठंडी धारा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म धाराएँ उच्च अक्षांशों की और बहती है व ठंडी धाराएँ उच्च अक्षांशों से उच्च कटिबंध की और को बहती है. ज्यादातर ठंडी धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तट के साथ साथ बहती है.



मुख्य सागरीय धाराएँ

महासागर में गर्म व ठंडी धाराओं का कर्म नियत होता है. संसार की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित है.

गर्म धाराएँ – मोजाम्बिक धारा, विषुवत रेखीय धारा, मेडागास्कर धारा एवं एगुतहास धारा.

हिंद महासागर की धाराएँ – ठंडी धाराएँ पश्चिमी पवन प्रवाह (ड्रिफ्ट) पश्चिम आस्ट्रेलिया धारा.

 

अटलांटिक महासागर की धाराएँ

ठंडी धाराएँ – पश्चिमी प्रवाह (ड्रिफ) वेन्युला धारा, लेब्रोडोर धारा, फॉर्कलैंड धारा, पूर्वी ग्रीनलैंड धारा आदि.

गर्म धाराएँ – उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट लेब्राडोर धारा, फॉकलैंड धारा, पूर्वी ग्रीनलैंड धारा आदि.

 

प्रशांत महासागर की धाराएँ

ठंडी धाराएँ – पश्चिमी पवन प्रवाह (ड्रिफ्ट), केलिफोर्निया धारा तथा पीरु धारा.

गर्म धाराएँ – क्युरोसिर्वा धारा, दक्षिणी विषुवतीय धारा, उत्तरी विषुवतीय धारा व पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा

 


सागरीय धाराओं के प्रभाव

तटवर्ती क्षेत्रों की जलवायु को ये धाराएँ बहुत प्रभावित करती है. जो पवन इन धाराओं के प्रभाव को महाद्वीपों के भीतरी भागों तक पहुँचा देती है. गर्म धारा तटवर्ती क्षेत्र की जलवायु को गर्म करती है तथा ठंडी धारा जलवायु को ठंडा बना देती है. किसी महाद्वीपों के पश्चिमी तथा पूर्वी तटों को इसी वजह से अलग पाया जाता है. ठंडी धारा के ऊपर बहने वाली पवन तटीय भागों के शुष्क व ठंडा बनाती है, जबकि गर्म धारा के ऊपर बहने वाली पवन तटीय क्षेत्रों में वर्षा कराती है.


व्यापार, मत्स्य उत्पादन, नो परिवहन आदि पर भी इन धाराओं का प्रभाव पड़ता है. गर्म व ठंडी धाराओं के मिलन स्थलों पर प्लेंकटन (सूक्ष्म जीव) पाए जाते है. जिन्हें मछलियाँ बहुत स्वाद से खाती है. इसी कारण उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के न्यूफाउंडलैंड द्वीप के पास ठंडी लेब्रोड़ोंर एवं गर्म गल्फ स्ट्रीम धाराओं के मिलने से यह क्षेत्र मत्स्य प्राप्ति के रूप में विकसित हो गया है.


महासागरीय धाराओं के साथ साथ जलयान सुगमता से चलते है. ये धाराएँ जलयान के संचालन में कभी कभी बाधा भी बन जाती है. उदाहरन ठंडी व गर्म धाराओं के मिलने से कोहरा बनता है जो दृश्यता के लिए बाधा उत्पन्न करता है.

  • महत्वपूर्ण तथ्य
  • जल का अधिकांश भाग महासागरों में एकत्र है.
  • जल में घुले खनिज लवण महासागर के जल को खारा बनाते है.
  • धाराओं का एक निश्चित क्रम होता है.
  • पृथ्वी के ७१% भाग पर जल है.
  • जल महासागर, वायुमंडल व स्थल पर चक्र के रूप में संचरण करता है.
  • सागरीय जल की तीन गतियाँ होती है. ज्वार, भाटा, लहरें व धाराएँ.
  • सागर के तटीय क्षेत्रों की जलवायु का व्यापार, मत्स्य उत्पादन नो परिवहन पर प्रभाव पड़ता है. समुद्र में चंद्रमा व सूर्य की आकर्षण शक्ति से ज्वार उत्पन्न होते है.

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