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स्कन्द षष्ठी Skand Shshthi की जानकारी

 स्कन्द षष्ठी महत्त्व

कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द षष्ठी के नाम से भी होता है. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है. पंचमी से युक्त षष्ठी तिथि को व्रत के लिए श्रेष्ठ माना गया है. व्रती को पंचमी से ही उपवास करना आरम्भ करना चाहिए और षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा करना चाहिए. इस व्रत की प्राचीनता और प्रमाणिकता स्वंय परिलक्षित होती है. इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है. स्कन्ध षष्ठी से राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्वयन का भी एतिहासिक कथानक जुड़ा है. कहते है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है स्कन्द षष्ठी पूजा से संबंधित पौराणिक परम्पराए भी है. भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करवाकर रक्षा की थी. इनके छह मुख है और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा. पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है.

स्कन्द षष्ठी पूजा की जानकारी

स्कन्द षष्ठी पूजन – स्कन्द षष्ठी पर भगवान शंकर और पार्वती को पूजा जाता है. मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इसमें स्कन्द देव स्थापित कर पूजा की जाती है तथा अखंड दीपक जलाये जाते है. भक्तों द्वारा स्कन्द षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया जाता है. भगवान को स्नान करवाकर नए वस्त्र पहनाए जाते है. इस दिन भगवान को भोग लगाते है, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दौरान की गई पूजा अर्चना विशेष फलदायी होती है. इसमें साधक तंत्र साधना भी करते है, इस दरमियान मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रम्हाचर्य का संयम रखना चाहिए.

स्कन्द कथा

कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब देत्यों का अत्याचार चारों तरफ फैल जाता है और देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है, तब सभी देवता भगवान ब्रम्हाजी के पास पहुंचते है और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते है. ब्रम्हा उनके दुःख को जानकर उनसे कहते है कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है. परन्तु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन रहते है.

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